जाने क्यों बन गए तेरे इश्क में दीवाने,
बड़े प्यार से संभाले हैं सभी तेरे परवाने।
समझ न सके थे इस मोहब्बत को अब तक,
तेरे इश्क से थे हम बिलकुल ही अनजाने।
बदनसीब वो नहीं जिन्हें प्यार नहीं मिलता,
मिलता है प्यार पर इज़हार नहीं मिलता।
बिखरे रहते हैं पलाश के फूल हर तरफ,
ज़िन्दगी भर वो गुलाब नहीं मिलता।
खुद से खुद ही छिन जाते हैं आजकल,
ख़याल उनके रुलाते हैं आजकल।
लोग कहते हैं कि बात क्या है?
कैसे बताएं, कितने तन्हा हैं आजकल?
इस इश्क ज़ालिम ने, कहीं का न छोड़ा,
नज़रों से दूर, दिल के करीब एक रिश्ता जोड़ा।
डूबे हैं उनकी याद, उनके प्यार में,
हुआ है प्यार और बाकी है थोडा।
Wednesday, March 31, 2010
Tuesday, March 30, 2010
इश्क का दर्द...
इस दिल ने हमें बहुत आज़माया है,
कभी है हसाया, कभी कभी रुलाया है।
दिन का छीना चैन और रातों को जगाया है,
आज किया याद उन्हें, तो यह गीत गाया है।
बेबस हैं हम, लाचार उनको पाया है,
हर घड़ी-हर लम्हा, जान पर बन आया है।
हर दिन बढ़ रही है चाहत यह, दीवाने हम हुए,
सिर्फ हम ही जानते हैं, इस दिल पे काबू कैसे पाया है।
उस दिन का इंतज़ार तो यह कुदरत भी करती होगी,
आमने सामने, बैठे हम दो, और चाँद निकल के आया है।
इस नादान ज़माने को कैसे हम समझाएं,
उस यार के चेहरे में, वो प्यार हमनें पाया है।
कभी है हसाया, कभी कभी रुलाया है।
दिन का छीना चैन और रातों को जगाया है,
आज किया याद उन्हें, तो यह गीत गाया है।
बेबस हैं हम, लाचार उनको पाया है,
हर घड़ी-हर लम्हा, जान पर बन आया है।
हर दिन बढ़ रही है चाहत यह, दीवाने हम हुए,
सिर्फ हम ही जानते हैं, इस दिल पे काबू कैसे पाया है।
उस दिन का इंतज़ार तो यह कुदरत भी करती होगी,
आमने सामने, बैठे हम दो, और चाँद निकल के आया है।
इस नादान ज़माने को कैसे हम समझाएं,
उस यार के चेहरे में, वो प्यार हमनें पाया है।
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