Wednesday, February 17, 2010

दोस्ती और दिल्लगी...

हमनें कभी दोस्ती को जाना न होता,
अगर हमारी ज़िन्दगी में आपका आना न होता।
यूँ ही गुज़ार देते ज़िन्दगी को अपनी,
अगर आपको अपना माना न होता।
नहीं होते अगर साथ आप हमारे,
जीने का कोई बहाना न होता।
बेरुखी जो आप दिखाते न इतनी,
इन आँखों को आंसू बहाना न होता।
एक यही तो फर्क होता है,
दोस्ती और दिल्लगी में।
दोस्ती, दोस्ती से दिल्लगी,
कब बन जाए पता नहीं होता।
काश दिल्लगी और दोस्ती साथ चल पाते,
और आज, उन्हें हमें छोड़ कर जाना न होता।

Thursday, February 4, 2010

जाने से...

सब कुछ है ग़ुम सुम तेरे जाने से।
मेरी आँखें हैं नम तेरे जाने से।
अपना हो साथ कोई, तो वक़्त कट जाता है,
हर आलम है गैर तेरे जाने से।

सोचा था न कभी, हम यहाँ आ जायेंगे,
वो बेदर्दी से हमें यूँ तङपाएंगे।
बे इन्तहा सितम वो करते चले गए,
पर हिम्मत भी है बहुत इस दीवाने में।

तेरे साथ की चाहत आखिर हम क्यों न करें,
इश्क किया है हमनें, ज्यादा अपनी जान से।
मेरी मौत की तारीख भी तय कर ले ज़ालिम,
इस प्यार की कीमत अदा होगी, मेरे जाने से।

आंसू क्यों निकले?

आसमां झुक जाए, इस दिल से जो इक आरज़ू निकले।
धरती हो जाए नम, इन आँखों से जो आंसू निकले।

उनके जुल्मों को सह कर भी, हम क्यों आज हसें?
लाख चोट खा कर भी यह दिल क्यों पिघले?

उन यादों के सहारे है यह मेरा दिल धडके।
जीना है मुश्किल हो गया, यूँ जल जल के।

ना वो जाने की इस सांस का कारण क्या है।
और ना मैं जानूँ, क्या कहूँ उनसे मिलके।

सूने सूने इस जहां में, कहाँ जा रहा मैं चलके?
आज कैसे वो हैं जी रहे, मुझसे बिछड़ के।

कल राह में चलते चलते वो मिल जाएँगे,
और पूछेंगे मुस्कुरा कर, कि ये आंसू क्यों निकले?