Wednesday, February 17, 2010

दोस्ती और दिल्लगी...

हमनें कभी दोस्ती को जाना न होता,
अगर हमारी ज़िन्दगी में आपका आना न होता।
यूँ ही गुज़ार देते ज़िन्दगी को अपनी,
अगर आपको अपना माना न होता।
नहीं होते अगर साथ आप हमारे,
जीने का कोई बहाना न होता।
बेरुखी जो आप दिखाते न इतनी,
इन आँखों को आंसू बहाना न होता।
एक यही तो फर्क होता है,
दोस्ती और दिल्लगी में।
दोस्ती, दोस्ती से दिल्लगी,
कब बन जाए पता नहीं होता।
काश दिल्लगी और दोस्ती साथ चल पाते,
और आज, उन्हें हमें छोड़ कर जाना न होता।

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